शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

कोई वजहों का...


तुम्हारा होना ... 
कोई तयशुदा देह नहीं
स्वप्न या यथार्थ नहीं
तुम्हारा होना .. 
सिर्फ आकुल आहटों की 
क्षणिक बेसब्री नहीं 
तुम्हारा होना ... 
मिटटी की वसीयत नहीं
संकल्पित वेदना का
आखिरी पड़ाव भी नहीं.. 
तुम्हारा होना... 
गदराई सरसों की 
अधखिली मिन्नत नहीं 
कसमसाती बर्फ की 
नर्म ताप नहीं 
तुम्हारा होना... 
सुप्त साँसों का 
घुमड़ता ज्वार नहीं
तुम्हारा होना...
सुनियोजित शब्दों का 
बेचैन उन्माद नहीं 
कोई वजहों का 
असबाब नहीं 
तुम्हारा होना...
अनुमानित सुख की 
समृद्ध व्याख्या भी नहीं 
मुट्ठी भर आसमान की 
भावुक जिद नहीं
यकीनन.. तुम्हारे होने में
ऐसा कुछ भी नहीं
तुम्हारे होने में...
बस..हमारी नादाँ आदतें
मुस्कुराती है
और.. चुपके से 
अबोध प्रार्थनाओं में 
चिपक जाती है 
तुम्हारे होने में...
हमारा अनकिया जुर्म
अधीर होकर लहलहाता है
और ...चुपके से
बेख़ौफ़ मर जाता है....