बुधवार, 27 नवंबर 2013

फटे-उघड़े आसमान से...




नहीं बचा अब 
मेरे जिस्म में 
तुम्हारे जिस्म की 
बेहोशी, सनक व 
खुर्राट धमक 
पगलाई हुई 
तमतमाई हुई 
फटे-उघड़े आसमान से 
तुम कैसे कहोगे ?.... 
नहीं बचा अब
रंगरेज हाथों में
उमड़-घुमड़ 
बेफिक्र छुअन.. 
संग संगाती
धूल उगाती 
टूटी मिट्टी की तबीयत से
तुम कैसे कहोगे ?....
नहीं बचा अब
कच्ची कोशिशों में
जिद-जतन के
झूठ फरेब..
इठलाती सी
लहराती सी
घोर निरर्थक चेहरों से
तुम कैसे कहोगे ?....