शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

तुम कौन हो...

तुमने सत्य कहा..
दारुण्य वक़्त में
अयाचित सत्य से परे
सब खत्म करने को भी कहा ...
तुम कौन हो ?
बेपरवाह कुछ भी..
कह देते हो..
सुना देते हो...
अंतस का ताप.
तुम नहीं थे सिर्फ 
एहसास भर के लिए..
तुमने समेट लेने को कहा.
मायामय फेहरिस्त व मीन मेख
तुम कौन हो ?
उम्मीदों की धूप जैसे
बिखरते हो कहीं भी..
और उतर जाते हो..
एकदम भीतर
360 डिग्री के शक्ति संपन्न स्पेस पर..
कूटाख्यान शब्दों को
तोड़-मरोड़ कर 
अनुरक्त डुबोते हो..
धवल चैतन्य स्पर्श में 
तुम रिसते-भींगते
तप्त आस हो शायद !!!

10 टिप्‍पणियां:

  1. यही तो रहस्य है...कि कौन है वह...

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  2. क्या बात है दोस्त अतिसुन्दर प्रतीक धूप आपके जीवन में खिले खिलती रहे

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  3. जीवित रहने की ऊर्जा ही तो है ये ... निकलने को बेताब रहती है ...

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  4. लाख छुपाये बिम्ब पर बोल उठता है उसी का प्रतिबिम्ब..पर बिम्ब ?

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  5. Excellent Prose.. Its a mind game to produce such wonderful lines. All the Best!!

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  6. 360 डिग्री के शक्ति संपन्न स्पेस पर..
    कूटाख्यान शब्दों को
    तोड़-मरोड़ कर
    अनुरक्त डुबोते हो..
    धवल चैतन्य स्पर्श में
    तुम रिसते-भींगते
    तप्त आस हो शायद !!!

    सुंदर पंक्तियाँ...

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  7. ...और जब तक यह अपने सकल अस्तित्व के साथ विद्यमान है, जीवन में जान है.

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  8. वाह क्या बात है :

    तुम कौन हो ?
    उम्मीदों की धूप जैसे
    बिखरते हो कहीं भी..
    और उतर जाते हो..
    एकदम भीतर
    360 डिग्री के शक्ति संपन्न स्पेस पर..

    प्रतीक और रूपक और पूरा पैरहन रचना का आकर्षक है।

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