सोमवार, 5 मई 2014

उसे तलाशना कैसा ....

धूप को.. 
आप कुछ भी कह लें
शब्द छोटे हो जाएंगे 
उसे तलाशना कैसा? 
उसे सिर पर उतार लेना है.… 
धूप तो हमारे
रग-रग में 
खिलती है
हम हरियाली बाहर ढूंढ़ते हैं
हम बारिश में भीगने 
बाहर भागते हैं
पर, धूप को तलाशना कैसा?
ख़ुदा से इश्क में
शब्द छोटे हो जाएंगे 
आप कुछ भी कह लें 
अंदर ही अन्दर 
बसंत सावन भादो 
धूप से रश्क करता है.....
वो हर पल चुपके से 
खूब तबीयत-तहज़ीब से उतरता है  
धूप ने कभी नहीं कहा, 
मुझे अपना सम्बल बन लो
अपनी बुद्धि का
क्यों नुक़सान करते हो ?
धूप ने कभी नहीं कहा,
मेरे पीछे चलो 
अपनी लज्जत को 
क्यों जाया करते हो ? 
कुछ भी कह लें हम 
बेअकली बड़ी हो जायेगी 
उसे तलाशना कैसा?
उसे सिर पर उतार लेना है.…
कान लगाकर सुनते हैं 
हम धूप को
ये कैसी बुद्धि है ?
जिसने छाया को 
भोले-भाले विश्वास सा
अपना संगी समझ लिया 
ये कैसी यात्रा है ?
ये कैसी यात्रा है ?.......