रविवार, 22 फ़रवरी 2015

ओ अलबेली....

ओ अलबेली....
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
भरोसे का स्वभाव,
तुम बदल देना चाहती हो
बिखरे समय को,
अपनत्व के यकीन को
तुम प्रेम करती हो सिर्फ
अपने हिस्से के प्रेम से,
मन की अनुकूलता से
ओ अलबेली....
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
निष्पाप होने का सुख
तुम पाना चाहती हो सिर्फ
अनकही विनम्रताएँ,
शून्य समतल सहजताओं में
डूबो देना चाहती हो
पहाड़ की संवेदनाएं,
ओ अलबेली....
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
प्रेम की वैधताएं
तुम चाहती हो सिर्फ
बदरंग जीवन की
विशिष्ट आग को...

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

एक चूड़ी वाला भी...


वो जो कहता है कि 
उम्मीदों की हजारों सड़कें-गालियां
बेताब दिन का चिट्टा-पुर्जा लिये,
घर को लौट जाती है
और मर जाती है.………………… 
एक चूड़ी वाला भी 
शेष बोझों को उठाये, 
हर्षित होकर
मरने के लिए
कोई नुस्खा समझना चाहता है.… 
वो जो कहता है कि 
फागुन की इतराती प्यास भी
कुछ तेज बयारों का
हिसाब लेना चाहती है
और मर जाती है.…………………
एक चूड़ी वाला भी
घर की पथरायी
फीकी मुस्कुराहटों को,
ठीक-ठाक नाप देना चाहता है
वो बहुत सटीक जानता है कि, 
दो व सवा दो के नाप के बीच से
कितनी कहानियां बनती रहती है....
बचपन के उतावलेपन में
उसके नाजुक मशक्कत को
हम हैरत से पढ़ते थे
समझ नहीं पाते थे.........................
आज जब मैं,
ठीक-ठाक उसकी मशक्कत समझ सकता हूँ
उसकी आवारगी महसूस कर सकता हूँ
तो मति -गति को साक्षी मान
वह हर्षित होकर
मरने के लिए
कोई नुस्खा समझना चाहता है.… 
वो समझना चाहता है कि
तथाकथित सटीक आंकड़ों, मजबूत दुरुस्त बही-खातों में
उसके हिस्से का
दो व सवा दो के नाप जैसा
अब भी कुछ बचा है क्या ?