ओ अलबेली....
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
भरोसे का स्वभाव,
तुम बदल देना चाहती हो
बिखरे समय को,
अपनत्व के यकीन को
तुम प्रेम करती हो सिर्फ
अपने हिस्से के प्रेम से,
मन की अनुकूलता से
ओ अलबेली....
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
निष्पाप होने का सुख
तुम पाना चाहती हो सिर्फ
अनकही विनम्रताएँ,
शून्य समतल सहजताओं में
डूबो देना चाहती हो
पहाड़ की संवेदनाएं,
ओ अलबेली....
विशिष्ट आग को...
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
भरोसे का स्वभाव,
तुम बदल देना चाहती हो
बिखरे समय को,
अपनत्व के यकीन को
तुम प्रेम करती हो सिर्फ
अपने हिस्से के प्रेम से,
मन की अनुकूलता से
ओ अलबेली....
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
निष्पाप होने का सुख
तुम पाना चाहती हो सिर्फ
अनकही विनम्रताएँ,
शून्य समतल सहजताओं में
डूबो देना चाहती हो
पहाड़ की संवेदनाएं,
ओ अलबेली....
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
प्रेम की वैधताएं
तुम चाहती हो सिर्फ
बदरंग जीवन कीविशिष्ट आग को...