कितनी बेजुबान यादें
बातें करती मन की रातें
शिकवों से भी खूब अघाते
थक-मर कर एक स्वप्न गाते
पर तुम,
कहाँ छूट गए राही ?
याचनाओं का दर्द तय है
चाहत पर चुप्पी तय है
कुछ आंसू गिरना तय है
बेमन का मरना तय है
पर तुम,
कहाँ छूट गए राही ?
ह्रदय को हर बार कहा
थमने को थम जा ज़रा
न भाग के यूँ भाग जरा
चुप्पी को यूँ देख ज़रा
पर तुम,
कहाँ छूट गए राही ?
यूँ कहने से भी क्या होगा
जिद का भी एक फलसफा होगा
रच-रच कर भी क्या होगा
अब फासलों से ही फैसला होगा
पर तुम,
छूट गए राही ........................
बातें करती मन की रातें
शिकवों से भी खूब अघाते
थक-मर कर एक स्वप्न गाते
पर तुम,
कहाँ छूट गए राही ?
याचनाओं का दर्द तय है
चाहत पर चुप्पी तय है
कुछ आंसू गिरना तय है
बेमन का मरना तय है
पर तुम,
कहाँ छूट गए राही ?
ह्रदय को हर बार कहा
थमने को थम जा ज़रा
न भाग के यूँ भाग जरा
चुप्पी को यूँ देख ज़रा
पर तुम,
कहाँ छूट गए राही ?
यूँ कहने से भी क्या होगा
जिद का भी एक फलसफा होगा
रच-रच कर भी क्या होगा
अब फासलों से ही फैसला होगा
पर तुम,
छूट गए राही ........................
इस भ्रमशील अंतर्वेदना का क्या करें। बहुत परेशान करती है।
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ छूट जाता है ... बहुत कुछ होता भी है पर जो नहीं होता मन उसको चाहता है ... मन की अंतर्वेदना को बख़ूबी लिखा है ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएंनि:शब्द !
जवाब देंहटाएं