कभी पूछा है ?
मन बंजर समंदर से
रेजा-रेजा चुप्पी के बारे में..
लड़ते लहरों पर
बिना जिन्दगी की मोहलत के
मंत्र मुग्ध योगी की मानिंद
धुनी रमाते हुए...
बस यूँ ही
अपने सर्वोत्तम को
दाँव पर लगाते हुए..
कभी पूछा है ?
अर्धचेतन साँसों में
घुटते धुएं से...
सहज सन्धानों की
जटिल भूमिकाओं के बारे में..
बस यूँ ही
तड़पन की महक
बिखेरते हुए..
कभी देखा है?
किश्तों में नदी को
मरते हुए..
पागल पानियों को
बस यूँ ही
अपने आह्लाद में
डूबते हुए..
कितना कुछ अजीब है ना ?
बहुत सारी प्यास रखकर
खामोशी का समंदर जीना...
निपट आर्तनाद सुनकर
प्रेम का छंद गढ़ना...
भरे-पूरे जीवन का
सम्मोहन देख
नदियों का हिस्सा बन जाना...
सच में दोस्तों
कितना कुछ अजीब है ना ?