यूं ही शब्दों का उधार न करो
थोड़ा और विस्तार करो
एक बार फिर विचार करो
शायद मैं उतना गलत नहीं हूँ
जितने हमारे रिश्तों के मापदंड
शायद गलत है
हमारे आसमान के अन्दर
बेगानी हवाओं के दखल
हमारी राह में उलझते
और राहों के दखल
मनचाही चाहतों का दखल
जो कि थोड़ा सा पसीजता है
बहुत ज्यादा तड़पाता है
उन परछाइओं का दखल
गलत मैं नहीं
रिश्तों की परिभाषा गलत है
हमारी अभिलाषा गलत है
दखल का दखल गलत है ........
आसी की कलम से
थोड़ा और विस्तार करो
एक बार फिर विचार करो
शायद मैं उतना गलत नहीं हूँ
जितने हमारे रिश्तों के मापदंड
शायद गलत है
हमारे आसमान के अन्दर
बेगानी हवाओं के दखल
हमारी राह में उलझते
और राहों के दखल
मनचाही चाहतों का दखल
जो कि थोड़ा सा पसीजता है
बहुत ज्यादा तड़पाता है
उन परछाइओं का दखल
गलत मैं नहीं
रिश्तों की परिभाषा गलत है
हमारी अभिलाषा गलत है
दखल का दखल गलत है ........
आसी की कलम से
आसी ?...पसीजता है..पसीजता चला जाता है..
जवाब देंहटाएंआसी ? आपने उत्तर नहीं दिया..
हटाएंआसी ???
जवाब देंहटाएंदखल का दखल गलत है,वाकई!!!
अनु
हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं संजय भास्कर हार्दिक स्वागत करता हूँ.
जवाब देंहटाएंसही पैमाने बहुत ज़रूरी होते हैं.वरना अर्थ का अनर्थ हो जाता है. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएं'गलत मैं नहीं
जवाब देंहटाएंरिश्तों की परिभाषा गलत है
हमारी अभिलाषा गलत है'
सच, गलत हम नहीं होते... परिस्थितियां ही कभी कभी पलट जाती हैं!