जिद-संशय से घिरा
सिर्फ करना जानता है
सूरज पर शक,
चाँद का दमन....
ये शक आवारा-वाचाल लहरों को
निशब्द बनाती है
बेमतलब बात उठाती है ...
जिद न तो मेरा है,
और न ही तुम्हारा...
वो सिर्फ साजिश की
स्याह बदलियाँ हैं,
जिद अपनी तरकीब में
पारंगत हो जाए,
कोई बड़ी बात नहीं.....
जिद अपनी सहूलियत में
जीत जाए,
कोई बड़ी बात नहीं....
ये सहूलियत, ये पारंगतता
बस आत्मा को ललचाती है
बेमतलब बात उठाती है......
हमें तो जंगल ही नसीब था
हम ताबूत में बंद होकर
तुम्हारे हिस्से से
बाहर आ गए हैं...
लहुलूहान किताबों-जूतों को
उसी जंगल में
उलीच देना,
हमें तो कुछ देर
जंगल ही जीना था...
हम आँखें बंद कर
माँ के सपनों से निकल
बाहर आ गए हैं,
हमारी नाजुक शरारतों से
खून के धब्बे मिटा,
उसी ताबूत में
सुला देना
हमें तो जंगल ही नसीब था......
उसी ताबूत में जायेंगे तो फिर से बाहर आना होगा ... इसी जंगल में दुबारा जीना होगा ... क्यों न इस जंगल को सुधार दिया जाए मिल कर ... गहरे अर्थपूर्ण शब्द ...
जवाब देंहटाएंजंगल में जंगलीपना...........आखिर इस जंगलीपन से बच कहां जाएं!
जवाब देंहटाएंनिशब्द बनाती है उमड़ते हुए भावों को ...
जवाब देंहटाएंजिद की जो दो सीमाएं है- बहुत जरूरी है ये तय करना कि आप किसकी ज़द में रहते हैं. फिर जिद रंग भी उसी ढंग से दिखाता है.
जवाब देंहटाएंजो मासूम जंगल में आये उनकी क्या खता . जिस पूरे तंत्र ने जंगल लगाया है उसे खबर कब होगी.
आपको सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ .....!!
जवाब देंहटाएंराहुल जी,
जवाब देंहटाएंअचानक अपने ब्लॉग पर आपको देख कर अच्छा लगा. नए साल के दूसरे ही दिन पुराना मित्र मिल गया. इससे अच्छी नए साल की शुरुआत क्या हो सकती है. सचमुच लम्बा अरसा हो गया था. इस बीच कोई संबंध-सम्पर्क न रहा. अब तो एक-दूसरे के ब्लॉग पर आना-जान लगा रहेगा. कहाँ हैं आजकल आप?
सुंदर प्रभावी रचना...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंदोनों रचनाएं प्रभावपूर्ण है ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग लेखन ..
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
उत्तम रचना
जवाब देंहटाएं'ज़िद' की बेमतलब सहूलियत को अच्छा व्यंजित किया है -लेकिन दूसरी कविता में 'माँ के सपनों से निकल' ताबूत में जाने की बात गले से नहीं उतरी.
जवाब देंहटाएंउत्तम रचना
जवाब देंहटाएंअति गहन...
जवाब देंहटाएंअनुपम रचना...... बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
मुकेश की याद में@चन्दन-सा बदन
अर्थ गर्भित बिंबप्रधान रचनाएँ हैं दोनों।
जवाब देंहटाएंसार गर्भित दोनों रचनाएं ... बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंहम ताबूत में बंद होकर
जवाब देंहटाएंतुम्हारे हिस्से से
बाहर आ गए हैं...
लहुलूहान किताबों-जूतों को
उसी जंगल में
उलीच देना,
हमें तो कुछ देर
जंगल ही जीना था...
हम आँखें बंद कर
माँ के सपनों से निकल
बाहर आ गए हैं,
हमारी नाजुक शरारतों से
खून के धब्बे मिटा,
उसी ताबूत में
सुला देना
हमें तो जंगल ही नसीब था......
उम्दा रचना।