वो जो कहता है कि
उम्मीदों की हजारों सड़कें-गालियां
बेताब दिन का चिट्टा-पुर्जा लिये,
घर को लौट जाती है
और मर जाती है.…………………
एक चूड़ी वाला भी
शेष बोझों को उठाये,
हर्षित होकर
मरने के लिए
कोई नुस्खा समझना चाहता है.…
वो जो कहता है कि
फागुन की इतराती प्यास भी
कुछ तेज बयारों का
हिसाब लेना चाहती है
और मर जाती है.…………………
एक चूड़ी वाला भी
घर की पथरायी
फीकी मुस्कुराहटों को,
ठीक-ठाक नाप देना चाहता है
वो बहुत सटीक जानता है कि,
दो व सवा दो के नाप के बीच से
कितनी कहानियां बनती रहती है....
बचपन के उतावलेपन में
उसके नाजुक मशक्कत को
हम हैरत से पढ़ते थे
समझ नहीं पाते थे.........................
आज जब मैं,
ठीक-ठाक उसकी मशक्कत समझ सकता हूँ
उसकी आवारगी महसूस कर सकता हूँ
तो मति -गति को साक्षी मान
वह हर्षित होकर
मरने के लिए
कोई नुस्खा समझना चाहता है.…
वो समझना चाहता है कि
तथाकथित सटीक आंकड़ों, मजबूत दुरुस्त बही-खातों में
उसके हिस्से का
दो व सवा दो के नाप जैसा
अब भी कुछ बचा है क्या ?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंकड़ी बड़ी उलझी हुई है, जिन्दगी गुणा-भाग हो गई है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और उम्दा कविता।
जवाब देंहटाएंकिसी अनसुलझे सवाल की तरह जिन्दगी भी बारीक फर्क जानते हुए भी नहीं नहीं नाप पाती ...
जवाब देंहटाएंउम्र का एक फासला बीतता है तो धीरे-धीरे बचपन/जीवन समझ आने लगता है. 'चूड़ीवाला' उन मासूम जिदों को अपनी 'ज़द' में , अपनी नाप तौल में क्यों बांधना चाहता है ये भी समझ आने लगता. आपने ह्रदय छू लिया है इस कविता से. मीना कुमारी के इस शेर के बिना यह टिप्पणी पूरी नहीं होगी-
जवाब देंहटाएंआबला-पा कोई इस दश्त में आया होगा
वर्ना आँधी में दिया किस ने जलाया होगा
जितनी जल्दी यह बात समझ आ जाए तो अच्छा
जवाब देंहटाएंवर्ना हर रोज हंगामा हुआ रक्खा है
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएं