ओ अलबेली....
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
भरोसे का स्वभाव,
तुम बदल देना चाहती हो
बिखरे समय को,
अपनत्व के यकीन को
तुम प्रेम करती हो सिर्फ
अपने हिस्से के प्रेम से,
मन की अनुकूलता से
ओ अलबेली....
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
निष्पाप होने का सुख
तुम पाना चाहती हो सिर्फ
अनकही विनम्रताएँ,
शून्य समतल सहजताओं में
डूबो देना चाहती हो
पहाड़ की संवेदनाएं,
ओ अलबेली....
विशिष्ट आग को...
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
भरोसे का स्वभाव,
तुम बदल देना चाहती हो
बिखरे समय को,
अपनत्व के यकीन को
तुम प्रेम करती हो सिर्फ
अपने हिस्से के प्रेम से,
मन की अनुकूलता से
ओ अलबेली....
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
निष्पाप होने का सुख
तुम पाना चाहती हो सिर्फ
अनकही विनम्रताएँ,
शून्य समतल सहजताओं में
डूबो देना चाहती हो
पहाड़ की संवेदनाएं,
ओ अलबेली....
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
प्रेम की वैधताएं
तुम चाहती हो सिर्फ
बदरंग जीवन कीविशिष्ट आग को...
क्या खूब दर्शन प्रकट किया है चंचल सुन्दरी के प्रति स्थिर पौरुष प्रेम का! बहुत अप्रतिम प्रकार से, अनोखे अलंकारों के आधार पर प्रस्तुत यह कविता अत्यन्त मनभावन है। बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंदेखिये इस अलबेली की अटखेलियाँ ..कितनी मनभावन है.
जवाब देंहटाएंपता नहीं ये अलबेली नटखट है या सहज ... चंचल है या विकल ... पर प्रेम को क्या आंकना ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर, लाजवाब रचना है ...
सुन्दर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंसचमुच भरोसे को निभाना इतना आसान तो नहीं...और अनुकूलता जो चाहता है वही तो मन है...सुंदर भाव !
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव....
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
अलबेली से ये '' मुश्किल है '' सिर्फ कहने भर के लिए है ताकि अपना अलबेलापन छुप जाये .
जवाब देंहटाएंसारगर्भित , विचारणीय भाव
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
बहुत खूब कही रविकर भाई .मुबारक .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कही रविकर भाई .मुबारक .
जवाब देंहटाएंअपने मन की मौज पर जीवन जीने का अभ्यस्त है जो वह प्रश्नों के व्यूह में क्यों फँसे भला !
जवाब देंहटाएंराहुल भाई बहुत सुन्दर भाव जगत रचा है रचना में बिम्ब भी निराले।
जवाब देंहटाएंराहुल भाई बहुत सुन्दर भाव जगत रचा है रचना में बिम्ब भी निराले।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मनोभाव ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शानदार कविता ...
जवाब देंहटाएंओ अलबेली....
जवाब देंहटाएंमुश्किल है तुम्हें सौंपना
प्रेम की वैधताएं
तुम चाहती हो सिर्फ
बदरंग जीवन की
विशिष्ट आग को...
ओ अलबेली ,नई नवेली ,
आग संग करत रही केलि
सुन्दर रचना है भाई साहब भाव की गागर है
ओ अलबेली....
जवाब देंहटाएंमुश्किल है तुम्हें सौंपना
प्रेम की वैधताएं
तुम चाहती हो सिर्फ
बदरंग जीवन की
विशिष्ट आग को...
ओ अलबेली ,नई नवेली ,
आग संग करत रही केलि
सुन्दर रचना है भाई साहब भाव की गागर है
शुक्रिया राहुल साहब बढ़िया लिख रहें हैं आप अक्सर हमारी आपकी टिप्पणियाँ परस्पर आंच बन जातीं हैं ऊर्जा हो जातीं हैं की।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया राहुल साहब बढ़िया लिख रहें हैं आप अक्सर हमारी आपकी टिप्पणियाँ परस्पर आंच बन जातीं हैं ऊर्जा हो जातीं हैं की।
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ लेखन के लिए आपको बधाई सद्य प्रेरक टिप्पणियों के लिए आपका आभार दिल से।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपकी उत्प्रेरक टिप्पणी का आपकी अगली पोस्ट अपेक्षित है।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपकी उत्प्रेरक टिप्पणी का आपकी अगली पोस्ट अपेक्षित है।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत पंक्तियाँ मित्र, मंगलकामनाएँ!
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