साबूत तौर-तरीके से
सर्वस्व मिट्टी का हो जाना
तुम्हारा सिर्फ एक अंजाम नहीं..
कुछ और भी इल्जाम आएंगे
एक-दो अलग से शिकवे-उलाहने
आएंगे ही तुम पर.....
ये सम्भव है कि
तुम प्रेम व पवित्रताओं के
अधूरे अंजाम से मारे जाओ
शायद-वायद तो नहीं
हाँ, बहुत हद तक. ..........
बहुत वक़्त अधूरा मरोगे
क्योंकि तुम उतना ही हो
जैसे अधूरी राख में
निर्वाण की अधमरी लौ.....
बिना किसी भूमिका के
कुछ और भी मौसम व
ऋतु चक्र का कोप-क्रंदन
हाँ, बहुत हद तक. ..........
कुछ मिथ्या, कुछ भ्रम व
कुछ-कुछ अदृश्य आदतों के
अंजाम से तुम्हें मरना होगा
ये सम्भव है कि
तुम अपने समय संकल्प में
एक न एक दिन डूब जाओ
क्योंकि तुम वैसे ही हो
जैसे अनसुलझे जीवन के झंझावातों में
कोई तुम्हारा ....
हाँ तुम्हारा......
मुक्ति का शोकगीत लिखता है
हर शब्द से मुनासिब होना
समय सापेक्ष नहीं होगा.....
तुम याद रखना
अधूरी कामनाओं को,
पानी जैसी प्रार्थनाओं को....
एक न एक पल को
परित्यक्त, अधूरे परिवेश के
अंजाम से तुम्हें मरना ही होगा
सर्वस्व मिट्टी का हो जाना
तुम्हारा सिर्फ एक अंजाम नहीं..
कुछ और भी इल्जाम आएंगे
एक-दो अलग से शिकवे-उलाहने
आएंगे ही तुम पर.....
ये सम्भव है कि
तुम प्रेम व पवित्रताओं के
अधूरे अंजाम से मारे जाओ
शायद-वायद तो नहीं
हाँ, बहुत हद तक. ..........
बहुत वक़्त अधूरा मरोगे
क्योंकि तुम उतना ही हो
जैसे अधूरी राख में
निर्वाण की अधमरी लौ.....
बिना किसी भूमिका के
कुछ और भी मौसम व
ऋतु चक्र का कोप-क्रंदन
हाँ, बहुत हद तक. ..........
कुछ मिथ्या, कुछ भ्रम व
कुछ-कुछ अदृश्य आदतों के
अंजाम से तुम्हें मरना होगा
ये सम्भव है कि
तुम अपने समय संकल्प में
एक न एक दिन डूब जाओ
क्योंकि तुम वैसे ही हो
जैसे अनसुलझे जीवन के झंझावातों में
कोई तुम्हारा ....
हाँ तुम्हारा......
मुक्ति का शोकगीत लिखता है
हर शब्द से मुनासिब होना
समय सापेक्ष नहीं होगा.....
तुम याद रखना
अधूरी कामनाओं को,
पानी जैसी प्रार्थनाओं को....
एक न एक पल को
परित्यक्त, अधूरे परिवेश के
अंजाम से तुम्हें मरना ही होगा
जो भी जन्म लेता है उसका मरना तो तय है ही..अब कोई कैसे जीया है उसी पर निर्भर करेगा कि वह कैसे मरेगा...बहुत गहरे जज्बात लिए प्रभावशाली कविता..
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जवाब देंहटाएंहमारे समूचे परिवेश की मार ही कुछ ऐसी है बढ़िया तर्तीबी से किये गए शब्द चयन से आगे की यात्रा में ले जाती है ये रचना।
जवाब देंहटाएंहमारे समूचे परिवेश की मार ही कुछ ऐसी है बढ़िया तर्तीबी से किये गए शब्द चयन से आगे की यात्रा में ले जाती है ये रचना।
जब मृत्यु अवश्यम्भावी है तो कुछ न कुछ कारण न होते हुए भी खोज ही लिया जायगा ...
जवाब देंहटाएंलेकिन मृत्यु के बाद कारण हो न हो क्या कुछ भी फर्क पड़ने वाला है ... गहरा एहसास और शब्दों का ताना-बाना रचना को बहुत ऊंचाइ तक ले जाता है ... लाजवाब ...
Very nice post ...
जवाब देंहटाएंWelcome to my blog on my new post.
बेहतरीन भावाव्यक्ति
जवाब देंहटाएंhttp://ghoomofiro.blogspot.in/
wakee. bahut gehan abhivyaktee.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चिंतनशील रचना
जवाब देंहटाएंसाहब कमाल रचते है आप. एक ‘तिलिस्म’ सा बांध जाता है. स्वर्ग और सुबह की आस, मोगरे और जूही भरे बाग़, और दमयंती के होने के बाद भी हमें क्यों मिलता है कर्कोटक? क्या जीवन इसी का उत्तर है. शायद हां?
जवाब देंहटाएंविसंगतियों के बीच,मृत्यु की स्वाभविक परिणति भी विरूप हो जाती है ,अधिकतर यही होता है .
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय
जवाब देंहटाएंतारीफ के काबिल रचना की प्रस्तुति। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंशायद.....
जवाब देंहटाएंनमस्ते भईया
~मन्टू
क्या बात है !.....बेहद खूबसूरत रचना....
जवाब देंहटाएंआप को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@आओ देखें मुहब्बत का सपना(एक प्यार भरा नगमा)
नयी पोस्ट@धीरे-धीरे से
ati sundar
जवाब देंहटाएंशोकगीत भी इतना मधुर ? हो नहीं सकता... होता है ।
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