मैं सिर्फ
एक आदमी भर का
सवाल नहीं
एक शक्ल भी नहीं,
किसी समंदर में डूबे बुलबुलों का
गुच्छा भी नहीं
एक जिस्म..एक रूह
एक कहानी भर नहीं
..कि लिखते-लिखते
अवसान....अवसान।।।।।
अधमरे अन्धकार का
अजन्मा समय नहीं,
क्षण दर क्षण रचता हुआ
कोई दस्तावेज भी नहीं,
कौन सा पन्ना ?
कौन सा शब्द ?
डूबो रही है सबको
यही शून्यता राह है तेरी....
इसी काया से
सजेगा
अवसान....अवसान।।।।।
देखो, पथिक,
अनचाहा तो कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं
स्वीकार करो
स्वीकार करो ...
टूटे संवादों का शापित स्वर
मधुर चोट की स्निग्ध तान
यही शून्यता राह है तेरी.....
कोई भी तुम्हारे जैसा नहीं
सूरज-चाँद जैसे
नहीं थे कभी
स्वीकार करो
स्वीकार करो ...
उमड़-घुमड़ सोती रातों का
स्वप्न अकेला..... बस अकेला
एक आदमी भर का
सवाल नहीं
एक शक्ल भी नहीं,
किसी समंदर में डूबे बुलबुलों का
गुच्छा भी नहीं
एक जिस्म..एक रूह
एक कहानी भर नहीं
..कि लिखते-लिखते
अवसान....अवसान।।।।।
अधमरे अन्धकार का
अजन्मा समय नहीं,
क्षण दर क्षण रचता हुआ
कोई दस्तावेज भी नहीं,
कौन सा पन्ना ?
कौन सा शब्द ?
डूबो रही है सबको
यही शून्यता राह है तेरी....
इसी काया से
सजेगा
अवसान....अवसान।।।।।
देखो, पथिक,
अनचाहा तो कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं
स्वीकार करो
स्वीकार करो ...
टूटे संवादों का शापित स्वर
मधुर चोट की स्निग्ध तान
यही शून्यता राह है तेरी.....
कोई भी तुम्हारे जैसा नहीं
सूरज-चाँद जैसे
नहीं थे कभी
स्वीकार करो
स्वीकार करो ...
उमड़-घुमड़ सोती रातों का
स्वप्न अकेला..... बस अकेला
दिन भर की थकान के बाद सोने से पहले एक ऐसी कविता मिल जाए तो सचमुच सुबह की ताजगी मिल जाए. क्या भावना, क्या शब्द और क्या कविता. आजकल ऐसी चुम्बकीय कविताएं मिलती नहीं.
जवाब देंहटाएंयही शून्यता राह है तेरी.....
जवाब देंहटाएंकोई भी तुम्हारे जैसा नहीं
सूरज-चाँद जैसे
नहीं थे कभी
...बहुत सुन्दर
शून्यता की और तो अकेले ही जाना होता है स्वीकार कर लो तो आसान हो जाती है राह ... गहरी अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंक्या बात है ?
जवाब देंहटाएंटूटे संवादों का शापित स्वर की भी पुकार सुनी जाती है ।
जवाब देंहटाएं