नहीं बचा अब
मेरे जिस्म में
तुम्हारे जिस्म की
बेहोशी, सनक व
खुर्राट धमक
पगलाई हुई
तमतमाई हुई
फटे-उघड़े आसमान से
तुम कैसे कहोगे ?....
नहीं बचा अब
रंगरेज हाथों में
उमड़-घुमड़
बेफिक्र छुअन..
संग संगाती
धूल उगाती
टूटी मिट्टी की तबीयत से
तुम कैसे कहोगे ?....
नहीं बचा अब
कच्ची कोशिशों में
जिद-जतन के
झूठ फरेब..
इठलाती सी
लहराती सी
घोर निरर्थक चेहरों से
तुम कैसे कहोगे ?....
सबसे पहले आपसे घोर शिकायत है इतनी ताखीर के लिए:) आप काफी व्यस्त थे ये जानता हूँ लेकिन आपके काव्यपान के लिए अपने तृषावंत स्थिति को बताना जरूरी समझा मैंने :)
जवाब देंहटाएंकविता बहुत अच्छी लगी. जिस आत्ममंथन को आपने इतने सुन्दर शक्ल में ढाला है वो वाकई लाजवाब है. कई बार कहने को बहुत कुछ होता है...लेकिन मन कह जाता है..किसी से क्यों कहें, किसलिए कहें... और वह स्वयं में सीमित रह जाता है.
जवाब देंहटाएंभावों का अमूर्त रूप पकड़ना मुश्किल होता है। सुन्दर प्रवाह पूर्ण अभिव्यक्ति है।
लगता है कि नहीं बचा पर... वजूद में जो घुला है वो..
जवाब देंहटाएंवाकई भावों का अमूर्त रूप पकड़ना मुश्किल ही नहीं अरुचिकर भी होता है।
जवाब देंहटाएंधूल उगाती
जवाब देंहटाएंटूटी मिट्टी की तबीयत से
तुम कैसे कहोगे ?....
नहीं बचा अब
कच्ची कोशिशों में
जिद-जतन के
झूठ फरेब..
इठलाती सी
लहराती सी
घोर निरर्थक चेहरों से
तुम कैसे कहोगे ?....
इन पंक्तियों ने तो नि:शब्द कर दिया
सब कुछ वही है ...वैसा ही है ...बस एक मन:स्तिथि है जो ऐसा सोचने पर मजबूर करती है ......उससे उबरकर फिर सब कुछ वैसा ही हो जाता है
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जवाब देंहटाएंनहीं बचा अब
कच्ची कोशिशों में
जिद-जतन के
झूठ फरेब..
इठलाती सी
लहराती सी
घोर निरर्थक चेहरों से
तुम कैसे कहोगे ?....
मन के भावों की गहन अनुभूति
उत्कृष्ट
सादर
होकर भी नहीं दिखता कभी कभी …। गहन छाप छोड़ती अभिव्यक्ति। …।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गहन भावपूर्ण प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गहन भावपूर्ण प्रस्तुति ......
जवाब देंहटाएंगहन प्रस्तुति ... भावों की कशमकश ... समझ से परे होती है ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत शब्दों की माला है ये रचना ।
जवाब देंहटाएंझूठ फरेब..
जवाब देंहटाएंइठलाती सी
लहराती सी
घोर निरर्थक चेहरों से
तुम कैसे कहोगे ?....
... गहन प्रस्तुति