मंगलवार, 14 जुलाई 2015

हर शब्द से मुनासिब होना....

साबूत तौर-तरीके से
सर्वस्व मिट्टी का हो जाना
तुम्हारा सिर्फ एक अंजाम नहीं..
कुछ और भी इल्जाम आएंगे
एक-दो अलग से शिकवे-उलाहने
आएंगे ही तुम पर.....
ये सम्भव है कि
तुम प्रेम व पवित्रताओं के
अधूरे अंजाम से मारे जाओ
शायद-वायद तो नहीं
हाँ, बहुत हद तक. ..........
बहुत वक़्त अधूरा मरोगे
क्योंकि तुम उतना ही हो
जैसे अधूरी राख में
निर्वाण की अधमरी लौ.....
बिना किसी भूमिका के
कुछ और भी मौसम व
ऋतु चक्र का कोप-क्रंदन
हाँ, बहुत हद तक. ..........
कुछ मिथ्या, कुछ भ्रम व
कुछ-कुछ अदृश्य आदतों के
अंजाम से तुम्हें मरना होगा
ये सम्भव है कि
तुम अपने समय संकल्प में
एक न एक दिन डूब जाओ
क्योंकि तुम वैसे ही हो
जैसे अनसुलझे जीवन के झंझावातों में
कोई तुम्हारा ....
हाँ तुम्हारा......
मुक्ति का शोकगीत लिखता है
हर शब्द से मुनासिब होना
समय सापेक्ष नहीं होगा.....
तुम याद रखना
अधूरी कामनाओं को,
पानी जैसी प्रार्थनाओं को....
एक न एक पल को
परित्यक्त, अधूरे परिवेश के
अंजाम से तुम्हें मरना ही होगा