साजिशन मुकम्मल होने का
स्वांग रचते,
नित नये तिलिस्म में
जन्म लेते, जीते
रेत के तजुर्बे..
मेरे ही शब्द के
एकाकी सारथी
सुनो, देखो, समझो
कि धूप ही
नरदेह का श्रृंगार है.......
अनगिन स्नेहिल धारा में
बहके-आह्लादित
टूटते मन का गीला परिवेश
फिर से बिखरने का
अबोध अनहद स्वर
सुनो, देखो, समझो
कि सिर्फ प्रेम ही
खुदा की आदत है....
आत्मा का झूमना, उमड़ना
सच-सच सहेजना
गाहे-गाहे रिसना
महसूसना...
आधी-आधी नैतिकता का
आधा-आधा संकल्प,
कुछ पवित्र फासलों में
मेरे ही शब्द के
एकाकी सारथी
सुनो, देखो, समझो
कि निष्पाप खुशबू को
बचाए रखना ही
समय का मुकम्मल संकल्प है....