शनिवार, 4 जून 2022

कहां पनाह, कौन सा दर ?

समय के सिलवट में उतरना

जैसे उतरना हो 

सत्यजनित आग का,

नादां जिस्म की कोपलों से रिसना

जैसे रिसता है प्रायश्चित

सब टूट कर बेजार

ब्रह्मलीन हुए भी तो...

कहां पनाह, कौन सा दर ?

ये यकीनन दिलचस्प होगा...

शायद होगा ये भी...

..कि कुचली सड़कें वापस नही आएगी

पानी का भी वही अंदाज ओ अंजाम...

पाखी भी चूर हो सिमट रहे

थकान में लिपट रहे...

कहां पनाह, कौन सा दर ?

शायद ही कोई आना चाहे

बंजर, वितान शब्दों का ख्वाब ओढ़े

ये वक़्त का पंचनामा,

उम्मीदों की फेहरिस्त

नीम शहद की खुशबू सी...

कटोरे में बासी भात को निहारती भूख

ये यकीनन दिलचस्प होगा

ओह, ये तड़प, वो आग

सीने से चिपकाए माँ

जेहन में उबलती बेचारगी

बेगानगी को कैसे लिखें, कहाँ रखें ?