रविवार, 22 नवंबर 2015

यही शून्यता राह है तेरी....

मैं सिर्फ
एक आदमी भर का
सवाल नहीं
एक शक्ल भी नहीं,
किसी समंदर में डूबे बुलबुलों का
गुच्छा भी नहीं
एक जिस्म..एक रूह
एक कहानी भर नहीं
..कि लिखते-लिखते
अवसान....अवसान।।।।।
अधमरे अन्धकार का
अजन्मा समय नहीं,
क्षण दर क्षण रचता हुआ
कोई दस्तावेज भी नहीं,
कौन सा पन्ना ?
कौन सा शब्द ?
डूबो रही है सबको
यही शून्यता राह है तेरी....
इसी काया से
सजेगा
अवसान....अवसान।।।।।
देखो, पथिक,
अनचाहा तो कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं
स्वीकार करो
स्वीकार करो ...
टूटे संवादों का  शापित स्वर
मधुर चोट की स्निग्ध तान
यही शून्यता राह है तेरी.....
कोई भी तुम्हारे जैसा नहीं
सूरज-चाँद जैसे
नहीं थे कभी
स्वीकार करो
स्वीकार करो ...
उमड़-घुमड़ सोती रातों का
स्वप्न अकेला..... बस अकेला


मंगलवार, 14 जुलाई 2015

हर शब्द से मुनासिब होना....

साबूत तौर-तरीके से
सर्वस्व मिट्टी का हो जाना
तुम्हारा सिर्फ एक अंजाम नहीं..
कुछ और भी इल्जाम आएंगे
एक-दो अलग से शिकवे-उलाहने
आएंगे ही तुम पर.....
ये सम्भव है कि
तुम प्रेम व पवित्रताओं के
अधूरे अंजाम से मारे जाओ
शायद-वायद तो नहीं
हाँ, बहुत हद तक. ..........
बहुत वक़्त अधूरा मरोगे
क्योंकि तुम उतना ही हो
जैसे अधूरी राख में
निर्वाण की अधमरी लौ.....
बिना किसी भूमिका के
कुछ और भी मौसम व
ऋतु चक्र का कोप-क्रंदन
हाँ, बहुत हद तक. ..........
कुछ मिथ्या, कुछ भ्रम व
कुछ-कुछ अदृश्य आदतों के
अंजाम से तुम्हें मरना होगा
ये सम्भव है कि
तुम अपने समय संकल्प में
एक न एक दिन डूब जाओ
क्योंकि तुम वैसे ही हो
जैसे अनसुलझे जीवन के झंझावातों में
कोई तुम्हारा ....
हाँ तुम्हारा......
मुक्ति का शोकगीत लिखता है
हर शब्द से मुनासिब होना
समय सापेक्ष नहीं होगा.....
तुम याद रखना
अधूरी कामनाओं को,
पानी जैसी प्रार्थनाओं को....
एक न एक पल को
परित्यक्त, अधूरे परिवेश के
अंजाम से तुम्हें मरना ही होगा


रविवार, 22 फ़रवरी 2015

ओ अलबेली....

ओ अलबेली....
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
भरोसे का स्वभाव,
तुम बदल देना चाहती हो
बिखरे समय को,
अपनत्व के यकीन को
तुम प्रेम करती हो सिर्फ
अपने हिस्से के प्रेम से,
मन की अनुकूलता से
ओ अलबेली....
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
निष्पाप होने का सुख
तुम पाना चाहती हो सिर्फ
अनकही विनम्रताएँ,
शून्य समतल सहजताओं में
डूबो देना चाहती हो
पहाड़ की संवेदनाएं,
ओ अलबेली....
मुश्किल है तुम्हें सौंपना
प्रेम की वैधताएं
तुम चाहती हो सिर्फ
बदरंग जीवन की
विशिष्ट आग को...

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

एक चूड़ी वाला भी...


वो जो कहता है कि 
उम्मीदों की हजारों सड़कें-गालियां
बेताब दिन का चिट्टा-पुर्जा लिये,
घर को लौट जाती है
और मर जाती है.………………… 
एक चूड़ी वाला भी 
शेष बोझों को उठाये, 
हर्षित होकर
मरने के लिए
कोई नुस्खा समझना चाहता है.… 
वो जो कहता है कि 
फागुन की इतराती प्यास भी
कुछ तेज बयारों का
हिसाब लेना चाहती है
और मर जाती है.…………………
एक चूड़ी वाला भी
घर की पथरायी
फीकी मुस्कुराहटों को,
ठीक-ठाक नाप देना चाहता है
वो बहुत सटीक जानता है कि, 
दो व सवा दो के नाप के बीच से
कितनी कहानियां बनती रहती है....
बचपन के उतावलेपन में
उसके नाजुक मशक्कत को
हम हैरत से पढ़ते थे
समझ नहीं पाते थे.........................
आज जब मैं,
ठीक-ठाक उसकी मशक्कत समझ सकता हूँ
उसकी आवारगी महसूस कर सकता हूँ
तो मति -गति को साक्षी मान
वह हर्षित होकर
मरने के लिए
कोई नुस्खा समझना चाहता है.… 
वो समझना चाहता है कि
तथाकथित सटीक आंकड़ों, मजबूत दुरुस्त बही-खातों में
उसके हिस्से का
दो व सवा दो के नाप जैसा
अब भी कुछ बचा है क्या ?