बुधवार, 11 दिसंबर 2013

सनकी आदमी...

दुःख की गांती बांधे
क्यों दिख रही है मुझे
बासी भात की खुशबू ?
पीड़ा की काई पर
क्यों पनप रहा है
बेचारगी का वृक्ष ?
सवाल इससे ज्यादा है....
अदहन के शोर में
चिल्लाते, मगज खपाते
पिचके..चिपटे बर्तन
मुझे लिखने नहीं देते
कोई प्रेम कहानी ...
आग के पास बचे-खुचे
मौन से राख तक की यात्रा के अवशेष
मुझे उड़ने नहीं देते
निर्द्वन्द ... नीले आकाश में
मेरे भीतर का सनकी आदमी
शब्द क्यों ठेलता है ?
मेरा सवाल इससे कहीं ज्यादा है......

गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

अग्निगंधा...

अग्निगंधा शब्दों का
आग पीता रक्तिम ख्वाब 
ऊबना..और डूबना..
बौद्धिक बहस की
व्यर्थ तलब...
बेमतलब.. और  बेसबब
तुम...
कुछ भी कह दो
कुछ भी रख दो.......
तेरे किस्से का मुंतजिर होना ..
दम उखड़ी साँसों का पुर्जा होना 
रच-रच के रचना,
कस-कस के कसना
तुम...
कुछ भी कह दो
कुछ भी रख दो.......
हर किस्से में
हर जीवन में
बेफिक्री है.. नादानी है,
थके-पिटे इल्जामों की
उलझी कतरन में
धूप..हवा व पानी है..
तुम...
कुछ भी कह दो...
कुछ भी रख दो...
थोड़ी सी मद्धिम उलझन है
मेरी आदत से
क्या कोई अनबन है ?
मेरे चेहरे पर क्या मातम है ?
तुम...
कुछ भी कह दो...
कुछ भी रख दो...
आप सा तो नहीं दिखता,
बतकूचन में नहीं बहता
पर क्यों ऐसे में
मैं चुप रहूँ ?
क्यों न दबकर ही
दो शब्द कहूं ?
मेरी कोशिशों का
दस्तरस
हाँ.. मेरी कोशिशों का
दस्तरस
हरदम.. हरपल..उत्फुल्ल है
नशा नित्य निश्छल है
बस कर्म का एक संबल है..
पर तुम ...
कुछ भी कह दो... 
कुछ भी रख दो...
 
 

बुधवार, 27 नवंबर 2013

फटे-उघड़े आसमान से...




नहीं बचा अब 
मेरे जिस्म में 
तुम्हारे जिस्म की 
बेहोशी, सनक व 
खुर्राट धमक 
पगलाई हुई 
तमतमाई हुई 
फटे-उघड़े आसमान से 
तुम कैसे कहोगे ?.... 
नहीं बचा अब
रंगरेज हाथों में
उमड़-घुमड़ 
बेफिक्र छुअन.. 
संग संगाती
धूल उगाती 
टूटी मिट्टी की तबीयत से
तुम कैसे कहोगे ?....
नहीं बचा अब
कच्ची कोशिशों में
जिद-जतन के
झूठ फरेब..
इठलाती सी
लहराती सी
घोर निरर्थक चेहरों से
तुम कैसे कहोगे ?....

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

कोई वजहों का...


तुम्हारा होना ... 
कोई तयशुदा देह नहीं
स्वप्न या यथार्थ नहीं
तुम्हारा होना .. 
सिर्फ आकुल आहटों की 
क्षणिक बेसब्री नहीं 
तुम्हारा होना ... 
मिटटी की वसीयत नहीं
संकल्पित वेदना का
आखिरी पड़ाव भी नहीं.. 
तुम्हारा होना... 
गदराई सरसों की 
अधखिली मिन्नत नहीं 
कसमसाती बर्फ की 
नर्म ताप नहीं 
तुम्हारा होना... 
सुप्त साँसों का 
घुमड़ता ज्वार नहीं
तुम्हारा होना...
सुनियोजित शब्दों का 
बेचैन उन्माद नहीं 
कोई वजहों का 
असबाब नहीं 
तुम्हारा होना...
अनुमानित सुख की 
समृद्ध व्याख्या भी नहीं 
मुट्ठी भर आसमान की 
भावुक जिद नहीं
यकीनन.. तुम्हारे होने में
ऐसा कुछ भी नहीं
तुम्हारे होने में...
बस..हमारी नादाँ आदतें
मुस्कुराती है
और.. चुपके से 
अबोध प्रार्थनाओं में 
चिपक जाती है 
तुम्हारे होने में...
हमारा अनकिया जुर्म
अधीर होकर लहलहाता है
और ...चुपके से
बेख़ौफ़ मर जाता है....

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

बहुत सारी प्यास रखकर...


कभी पूछा है ?
मन बंजर समंदर से
रेजा-रेजा चुप्पी के बारे में..
लड़ते लहरों पर
बिना जिन्दगी की मोहलत के
मंत्र मुग्ध योगी की मानिंद
धुनी रमाते हुए...
बस यूँ ही 
अपने सर्वोत्तम को
दाँव पर लगाते हुए..
कभी पूछा है ?
अर्धचेतन साँसों में
घुटते धुएं से...
सहज सन्धानों की
जटिल भूमिकाओं के बारे में.. 
बस यूँ ही
तड़पन की महक
बिखेरते हुए..
कभी देखा है?
किश्तों में नदी को
मरते हुए.. 
पागल पानियों को
बस यूँ ही
अपने आह्लाद में
डूबते हुए..
कितना कुछ अजीब है ना ?
बहुत सारी प्यास रखकर
खामोशी का समंदर जीना...
निपट आर्तनाद सुनकर
प्रेम का छंद गढ़ना...
भरे-पूरे जीवन का
सम्मोहन देख
नदियों का हिस्सा बन जाना...
सच में दोस्तों
कितना कुछ अजीब है ना ?

गुरुवार, 18 जुलाई 2013

सफ़ेद उम्मीदों के बीच...


सफ़ेद उम्मीदों का
शब्द लिए
बच्चे बीन रहे हैं
टेढ़े-मेढ़े सपने..
तोड़- मरोड़ कर
पढ़ी जा रही है कहानियाँ
उलटी धाराओं में
पानी पीटकर
नदी बो रही है
स्वर्णिम सूर्य का चेहरा .....
एक मुद्दत के बाद
रात भर
ठंडी दूब टपक रही है
जैसे ठंडे जिस्मों से
कोपलें रिस रही हो ....
मुझे दिख रहा है
शब्दों, कहानियों का
परास्त आदमी
तिलस्म के ढेर में
सफ़ेद उम्मीदों के
बीच अलोप हुआ जा रहा है..... 

रविवार, 14 जुलाई 2013

इस तरह मिल...

यूं ही शब्दों का उधार न करो
थोड़ा और विस्तार करो
एक बार फिर विचार करो
शायद मैं उतना गलत नहीं हूँ
जितने हमारे रिश्तों के मापदंड
शायद गलत है
हमारे आसमान के अन्दर
बेगानी हवाओं के दखल
हमारी राह में उलझते
और राहों के दखल
मनचाही चाहतों का दखल
जो कि थोड़ा सा पसीजता है
बहुत ज्यादा तड़पाता है

उन परछाइओं का दखल
गलत मैं नहीं
रिश्तों की परिभाषा गलत है
हमारी अभिलाषा गलत है
दखल का दखल गलत है ........
                                                                आसी की कलम से