शनिवार, 23 जुलाई 2022

बेहद असामान्य सा..

शायद कोई एक
उठ खड़ा होगा 
बेहद असामान्य सा,
तरंगदैर्ध्य की लय साधते
समीप होकर भी 
अदृश्य महक बटोरते
कांपते हाथों को सौंपते
धड़कते हृदय का दस्तावेज
बेहद असामान्य सा...
यही कहना दुरुस्त होगा
समीचीन होगा, तटस्थ होगा
प्रेम में यही होगा
पेड़ों की मदहोश आदतें
उठ खड़ी होगी आदतन
आंखें डूबने को होगी
शब्द दर शब्द किस्सागोई में...
जब कोई एक, 
यूं ही सवाल पूछेगा
मौसम की बदमिजाजी पर
अल्हड़ हवा की मानिंद
जो कुछ न हुआ होगा
एक संग होकर
कितना कुछ होगा 
बेहद असामान्य सा ??




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