गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

...जो भोली सी उदासी है


यार जिंदगी...
मेरे-तुम्हारे भीतर
लय में उठता हुआ
धधकता हुआ जो सब्र है...
वो कोई तंज नहीं है
चेहरे का.
वो कोई पीड़ा नहीं है
सब्र के सब्र का
पर, दुःख कहाँ नहीं है....?
किसी अजनबी को
सब कुछ सौंपते हुए
नहीं सोचते हम
कि सपनों में जीते हुए
कि उलझन में गलते हुए
बहते ह्रदय की
जो भोली सी उदासी है...
वो कितनी मारक है..
अब कोई शब्द नहीं है
किताबों में,
कोई स्पर्श भी नहीं
अतीत के संवादों का
पर, दुःख कहाँ नहीं है.....?
यार जिंदगी...
मेरे-तुम्हारे भीतर
कई सौ चेहरे हैं 
सब बेमेल, अनगढ़ा
गैरवाजिब सा उगता हुआ.. 
स्वांग में डूबा 
मेरे जिस्म में भी 
कलपते खालीपन की जो आदत है...
वो मेरा दुःख नहीं है..
मैं तेरे जिद्दी हौसले की
कसम खाकर कहता हूँ कि
सब्र, उदासी, सपने
ये मेरा दुःख नहीं है..
प्यार, मोहब्बत के किस्से
मेरा दुःख नहीं है..
तुम्हें अपना सब कुछ मानकर
ह्रदय से हारकर
यह घोषणा करता हूँ कि
मेरी थकी-हारी निष्काम रातें
शून्य सपाट निर्दोष हादसे
मेरा सरल निश्छल समंदर
व अनंत अगाध आत्मीयता ही
शायद मेरा दुःख है...


10 टिप्‍पणियां:

  1. निःशब्द हूँ आपकी रचना पर. सच में .....

    जवाब देंहटाएं
  2. अनंत अगाध आत्मीयता जिसे मिल जाती है.. वह तो दुनिया का बादशाह बन जाता है...उसकी तलाश ही सबसे बड़ा दुःख है...

    जवाब देंहटाएं
  3. दुख ही आत्‍मीयता से उपजता है। जिसके पास नहीं वो दुख में भी दुखी नहीं। दर्शनपरक भावनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रस्तुति प्रशमसनीय है। मेरे नरे नए पोस्ट सपनों की भी उम्र होती है, पर आपका इंजार रहेगा। धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत से सवाल उठे मन में .... सुलझाते भी गए .....

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहद की सुन्दर रचना गज़ब का रूापकत्व और प्रतीक विधान लिए शब्द माधुरी लिए भाव संयोजन की चातुरी लिए।

    वो कोई तंज नहीं है
    चेहरे का.
    वो कोई पीड़ा नहीं है
    सब्र के सब्र का
    पर, दुःख कहाँ नहीं है....?

    सुप्रिय मान्यवर श्रृंखला भागवत पुराण पर ज़ारी है। शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  7. यार जिंदगी...
    मेरे-तुम्हारे भीतर
    लय में उठता हुआ
    धधकता हुआ जो सब्र है...
    वो कोई तंज नहीं है
    चेहरे का.
    वो कोई पीड़ा नहीं है
    सब्र के सब्र का
    पर, दुःख कहाँ नहीं है....?

    बोले तो नानक दुखिया सब संसार। शुक्रिया आपकी प्रेरक टिप्प्णियों का। आप पढ़ते रहें हैम लिखते रहेंगे।

    जवाब देंहटाएं
  8. मेरा सरल निश्छल समंदर
    व अनंत अगाध आत्मीयता ही
    शायद मेरा दुःख है...
    मन कि पीड़ा उकेरती रचना .....!!!!

    जवाब देंहटाएं